आँगन।।
वो कुछ यादें दिल में यु आती है,
पलकों पे बस ख्वाब छोड़ जाती है,
आँखें ख्वाबो में यु ही खो जाती है,
बिन बोले ये पलके सो जाती है।।
वो बात बचपन की नहीं भूल पाता,
वो अपनों का प्यार बहुत याद आता,
वो याद भी मन को बहुत सताता,
याद आता है वो प्यारा सा चाटा।।
उस आँचल की छाव को दिल तरस जाता है,
यादो को लेकर ये आँख बरस जाता है,
माथे पे हाथ रखकर अब कौन सुलाता है,
कौन अब बातो बातो में manners सिखाता है।।
क्या उम्र थी वो हमारी,
न फ़िक्र न होशियारी,
बस सपने पलते ख्वाबो में,
जिन्हें लिखने की थी तैयारी।।
निकले तो कुछ यु के अब,
काफी आगे निकल गए,
उस आँगन को सुना कर,
वक्त के पन्नो में ढल गए।।
चाहे ज़िन्दगी जहा ले जाए,
वो आँगन आज भी मुझे याद करता है,
वो कल से आज तक,
मेरे आने की आह ताकता है,
वो आँगन जहा इतना प्यार बरसता है,
मेरा दिल उस प्यार भरे आँगन को तरसता है।।

Vinay Singh

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