त चलता रह।
वो दन क 24 घट जो तझ तरी म ज़ल तक प चाएग,
वो जो बीतन क बाद ना कभी लौट क आएग।
त चलता रहा तो म ज़ल मल ही जाएगी,
खद नय त भी जब तरा साथ नभान आएगी।
गरगा त, लड़खड़ाएगा त, वो नह ह हाथ म तर,
पर गरकर उठना और उठकर चलना य तो नह ह बस क बाहर तर।
तरी क मत भी तरा साथ नभाएगी,
त चलकर तो दख म ज़ल खद आसमान स उतर क आएगी।
कोई तर साथ नह तो या गम ह,
पर त खद का साथ द य भी या कम ह।
जो जल रही ह तर सीन म वो लौ ह तर इराद क ,
हवा लगन पर भी जो ना बझ सक वो च गारी ह तर ह सल क ।
ना कोई ह र तझस ना कोई ह पास तर,
जो तन कया वही साथ जायगा तर,
उसक मज़ भी तर आग झक कर दखायगी,
तर इराद क चमक जब उसक आख को जलाएगी।
उठा क कदम श तो कर य सफर,
जब ह सल ह बलद तो फर ह कस चीज़ डर।
हाथ क लक र पढ़ना अब कर बद,
अभी स चल और जीत क दखा ज़ दगी क जग।
-हिमानी भरद्वाज